देश के मेडिकल एजुकेशन सेक्टर में घुसे कुछ शातिर लोग मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए परीक्षा के जरिए होने वाली प्रक्रिया को पलीता लगाने में लगे हैं. देश भर में नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एन्ट्रेंस टेस्ट (NEET) में प्रदर्शन के आधार पर छात्रों को मेडिकल कॉलेजों में दाखिला दिया जाता है. NEET में नीचे रैंक हासिल करने वाले छात्रों से मोटा डोनेशन वसूलने के बाद उनके लिए सीटों को पहले से ही ब्लॉक कर दिया जाता है. NEET को इस मकसद से शुरू किया गया था कि मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की इच्छा रखने वाले छात्रों पर मानसिक और आर्थिक बोझ को हल्का किया जा सके. इसके साथ ही कैपिटेशन फीस जैसी अनियमितताओं को रोक कर ये सुनिश्चित किया जा सके कि केवल योग्य छात्रों को ही मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिले. कई शिक्षा विशेषज्ञों ने इस नए सिस्टम का स्वागत किया. भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI), केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के साझा प्रयासों की वजह से ही सभी मेडिकल अभ्यर्थियों को एक ही परिधि में लाने वाला NEET अस्तित्व में आ सका. अप्रैल 2016 में शीर्ष अदालत ने NEET को दोबारा अमल में लाने का आदेश दिया. ये MCI की उस अधिसूचना को कोर्ट की ओर से अवैध करार देने के तीन साल बाद हुआ जिसमें MBBS और BDS के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा कराने का प्रावधान था. इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम ने पड़ताल में पता लगाया कि किस तरह कुछ मेडिकल कॉलेज अब भी योग्यता की अनदेखी कर परीक्षा में निम्न स्तर का प्रदर्शन करने वाले छात्रों को दाखिला देने के लिए छल का सहारा ले रहे हैं.