18वें एशियाई खेलों में पहलवान बजरंग पुनिया ने भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया है. रविवार को गेम्स के पहले दिन उन्होंने पुरुषों की 65 किलोग्राम भारवर्ग फ्रीस्टाइल स्पर्धा के फाइनल में जापान के ताकातानी दायची को 3-1, (11-8) से मात दी. सेमीफाइनल मुकाबले में बजरंग ने मंगोलिया के बाटमगनाई बैटचुलुन को 10-0 से मात दे फाइनल में प्रवेश किया था. दोनों पहलवानों के बीच जोरदार टक्कर देखने को मिली, लेकिन आखिर में बाजी बजरंग पूनिया ने मारी.
बजरंग ने अपने पहले मुकाबले में उज्बेकिस्तान के पहलवान सिरोजिद्दीन खासानोव को 13-3 से मात दे क्वार्टर फाइनल का सफर तय किया. क्वार्टर फाइनल में उन्होंने ताजिकिस्तान के फेजेव अब्दुलकासिम को 12-2 से एकतरफा शिकस्त दे अंतिम-4 में प्रवेश किया, जहां मंगोलिया के बाटमगनाई बैटचुलुन को 10-0 से मात दे फाइनल में जगह बनाकर अपना पदक पक्का किया.
24 साल के बजरंग पूनिया ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती के गुर सीखे और अब वो देश का परचम लहरा रहे हैं. हरियाणा के बजरंग ने 2014 में कॉमनवेल्थ खेलों में 61 किलोग्राम वर्ग में रजत जीता था और इस बार वह इन खेलों में अपने पदक के रंग को बदलने में कामयाब रहे.
हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले बजरंग को कुश्ती विरासत में मिली. उनके पिता बलवान पूनिया अपने समय के नामी पहलवान रहे. लेकिन गरीबी ने उनके करियर को आगे नहीं बढ़ने दिया. कुछ ऐसा ही बजरंग के साथ हुआ. बजरंग के पिता के पास भी अपने बेटे को घी खिलाने के पैसे नहीं होते थे. इसके लिए वो बस का किराया बचाकर साइकिल से चलने लगे. जो पैसे बचते, उसे वो अपने बेटे के खाने पर खर्च करते थे. ऐसे हालात से गुजरते हुए बजरंग ने पहलवानी की दुनिया में देश का नाम रोशन किया.