पत्रकार- सूर्य प्रकाश शर्मा/दिल्ली!! परम सत्य की खोज और उसके साथ जुङा गुरु-शिष्य संबंध प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है। एक शख्सियत जिन्हें शब्दों में उतारने की कोशिश कर रहे हैं वे काठी राजपूत राजपरिवार से हैं जिनका परिचय दरबार साहिब वनराज सिंह जो वारिस हैं सुदामदा धाधंलपुर राज्य काठियावाड़ गुजरात के । आप ऐतिहासिक देव-भूमि जिसे वीर-भूमि भी कहा जाता है जो धाधंलपुर काठियावाड़ राज्य में 28, गाँव व 135, स्क्वायर माईल में फैली हुई पांचाल गुजरात में स्थित हैं। पांचाल राज्य का इतिहास 15वीं शती का है। पांचाली का पांचाल राज्य अर्थात द्रोपदी का जन्म स्थान रहा जहाँ त्रिनेत्रेश्वर में अर्जुन के साथ स्वयंवर हुआ था और भगवान कृष्ण की ससुराल अर्थात सत्यभामा के पितृगृह सत्यार्थ देव के द्वा रिका। जहाँ से सम्पूर्ण विश्व में अश्व भेजें जातें रहें ये वही काठी नस्लीय अश्व होते थें, जो आज भी इन गौरवशाली राजपूत राजपरिवारो के आधिपत्य में हैं। ये “काठी राजपूत” इनके इष्ट सूर्य-देव हैं और भगवान शिवजी के उपासक हैं। इनकी आराध्या कुल देवी मरमरी मोमाई शक्ति माता हैं। समस्त लङाईयो में फतेह का कारण अपनी आराध्या देवी को मानते हैं और शौर्य का श्रेय अपने इष्ट देव सूर्य भगवान को देते हैं और क्यों न देवे “सूर्यप्रकाश की सूक्ष्म शक्तियां ही तो मेरुदंड के माध्यम से आपके शरीर को नवशक्ति प्रदान करने वाले महाप्राण से आपका पोषण करतें हैं। आत्म सम्मानित जीवन और किसी के आगे सर नहीं झुकाना यह इन्हें अपनी विरासत से मिला है। वालकर-समझौते के समय 29 राजाओं को बुलाया गया था तब दरबार साहिब वीर गोदङ बापू खवङ सुदामा धाधंलपुर राज्य काठियावाड़ गुजरात के टेन्ट के पर्दे को तलवार से चीर के अंदर गये। झुकें नहीं ऐसा इन राजाओ का इतिहास रहा है। गोदङ बापू खवङ ने जूनागढ़ के बाबी हमीदखान को हराया था। हलवाद हाउस के मालसिंहजी झाला ने वाला काठी राजपूत की राजकुमारी वालु बा मां से शादी की थी जिनसे बहुत प्रतापी पुत्र खवङ जी हुए जिन्होंने कई युद्ध लङे एवं विजयी हुए। इस राजकुल में बङे-बङे शूरवीर योध्दा हुए हैं,व बङे दानवीर और आध्यात्मिक राजघराना रहा है। यही नहीं दरबार साहिब वनराज सिंह का ननिहाल भी समृद्ध बरवाला कुन्दनी जसदण राज्य है उनका भी गौरवशाली इतिहास रहा है। अतः ऐसे गौरवान्वित राजघराने से आप हैं इसलिए आपका व्यक्तित्व सरल,सरस,सहज और अपनत्व के समस्त गुणों से भरपूर है। सरल ऐसे कि कल-करतें झरनों जैसे। प्रकृति प्रेम से आकर्षित सम्पूर्ण भारतवर्ष का भ्रमण किये है। सरस जीवन-शैली रसमयी धारा में प्लावित आध्यात्म के मार्ग में इठलाती हुई निरन्तर अग्रसर। कई संतों के आशीर्वाद को प्राप्त करतें हुए जीवन का ठहराव गिरनार के प्रभु दत्तात्रेय आश्रयाधिन परम सिध्द सद्गुरु-शेरनाथ बापू नाथ संप्रदाय से दीक्षित होकर शरणागत हुए। आपके द्वारा नवरात्र के कई अनुष्ठान गिरनार पर संपादित हुए। आपको गिरनार से हिमालय तक की पर्वत-श्रृंखला से विशेष अनुराग हैं। सहजता आपके जीवन में कूट कूट कर भरी हुई है। आपने संस्कृत से एम ए और बी•एड किया है तथा विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद का उचित निर्वहन कर रहें हैं। कई पत्रिकाओं के संपादक भी रह चूके है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में आपके द्वारा सेवा दी जाती है रही हैं। इतिहास, पर्यावरण, पुरातत्व एवं अभयारण्य में विशेष रूप से रुचि हैं और उस क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा अनवरत रहतीं हैं। काठी नस्लीय घोड़ो के रखरखाव पर विशेष अभिरुचि हैं। गिर गायों में भी आपकी विशेष श्रद्धा एवं प्रेम होना स्वाभाविक है। वे सभी गुण आपमें उपलब्ध हैं जो आपको अपने गौरवशाली राजघराने से विरासत में प्राप्त हुई। राजपूती आन-बान-शान का निर्वहन करते हुए आध्यात्म की ओर अग्रसर है या यूं कहें कि आत्म चिंतन व आत्म अन्वेषण करतें हुए आध्यात्म की खोज में लगें हुए हैं। हम सब आपकी उज्जवल भविष्य की कामना करतें हैं। आप अपने जीवन के नवीन आयामों को पाने में सफल रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी लेखनी को विराम देते हैं।