अपने और पराए भी
सब चले गए साहिल पर।
किससे करू मोहब्बत
अब भरोसा नहीं उस पर।
यदि पत्थर मारता हूँ
दरिया के साहिल से।
अजब हलचल हो जाती है,
ठहरे हुए पानी में।
मुकद्दर ने मिलाया हमें
दरिया ने डुबाया है बहुत।
हवा ने क्या सितम ढ़ाया
उस साहिल ने डराया है बहुत।
मैं डूब गया हूँ
अपने ही आँखो के दरिया में।
समंदर क्या डुबोएगा मुझे
हम तो पहले ही डूबे हैं दरिया में।
संकलन-अंकुर तिवारी