चुनावी फसल काटने के लिए राजनितिक दल किसानो के क़र्ज़ माफ़ करने के सब्ज़बाज़ तो दिखा देते हैं लेकिन इससे देश की अर्थ व्यवस्था पर कितना बुरा असर पड़ता है इस विषय पर कोई सोचना नहीं चाहता। देश के ख़ज़ाने और बैंकिंग सेक्टर पर उल्टा असर पड़ता है। राहुल गाँधी ने देश के सभी किसानो के क़र्ज़ माफ़ करने के सब्जबाग दिखा दिए हैं। राहुल के इस वादे को पूरा करने के लिए बैंको को तक़रीबन 9 करोड़ किसानो पर बकाया पांच करोड़ रुपए का क़र्ज़ माफ़ करना होगा यह देश के सकल घरेलू उत्पाद का तक़रीबन 3 फीसदी है। 2008 में 3. 73 करोड़ किसानो के क़र्ज़ माफ़ किये गए। बैंकिंग सेक्टर के लोग अभी चुप हैं लेकिन उनका मानना है कि पुरे बैंकिंग सेक्टर के लिए ये घातक साबित होगा। बैंकिंग सेक्टर के अधिकारियों को ये भी डर है कि कहीं कोई होम लोन और ऑटो और अन्य लोन माफ़ करने का कोई वायदा न कर दे।
इस बात से कोई इंकार नहीं करता कि किसानो को अतिरिक्त मदद चाहिए क्यूंकि उनकी आय नहीं बढ़ पा रही लेकिन कृषि क़र्ज़ माफ़ी उसका उपाय नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 -17 तक देश में क़र्ज़ लेने वाले किसानो की संख्या 10 .70 करोड़ थी इन्होने 2017 -18 में 7. 53 लाख करोड़ रुपए का कृषि ऋण लिया हुआ है। उम्मीद है तकरीबन 11 करोड़ किसानो के ऊपर 8 -9 लाख करोड़ का कृषि ऋण है। सभी राजनितिक दलों को वोटो की फसल काटने के लिए ऐसे फैंसलों से बचना चाहिए जो देश के आर्थिक ढांचे के लिए खतरनाक है।
Deepak sharma
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