अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प का ये बयान कि अमरीका अब दुनिया की रखवाली का ठेका नहीं ले सकता हैरान करने वाला है। इस का साफ़ सा मतलब है कि जहाँ अमरीकी फौजें फंसी हुई हैं उनको वहां से निकालने का बहाना ढूंढ रहा है। या जब उसका ,उसके हिसाब से मकसद हल हो जाता है तो वहां से निकलने की कोशिश करता है। जहाँ तक ठेकेदारी की बात है अमरीका खुद को दुनिया का लम्बरदार समझता रहा है और वो चाहता रहा है कि दुनिया उसके इशारों पर चले। जो उसके हिसाब से नहीं चला वो अपने अलग अलग तरीके से निपटता रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति खुद को दुनिया का राष्ट्रपति समझते रहे हैं। उन्होंने जान बूझकर दो राष्ट्रों झगडे में टांग को फंसाया और खुद ही फैंसले करने लगे ,खुद ही सजा देने लग गए। वे ये भी तय करने लग गए कि किस के पास कौन कौन से हथियार रहेंगे। कहीं सरकार बना दी कहीं गिरा दी ये उसकी करतूतें रही हैं। देशों पर बम्ब भी खुद गिराता है ,जनता को राहत सामग्री भी खुद भिजवाता है। अमरीका खुद संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था को ठेंगा दिखाता हैं। उसे अपने तरीके से चलाने की कोशिश करता हैं। जो संस्था इनके हिसाब से नहीं चलती उसे छोड़ देते हैं। उन्होंने पेरिस समझौता भी छोड़ दिया। वे पर्यावरण को लेकर विश्व्यापी अभियान को बेकार की कवायद मानते हैं। ट्रम्प के अड़ियल रवैये के कारण उनके सहयोगी अमरीकी रक्षा मंत्री इस्तीफा देकर चले जाते हैं. आखिर अमरीका से किसने और कब कहा है कि वो दुनिया का रखवाला या ठेकेदार बने। सच तो ये है कि वो खुद ही दुनिया का ठेकेदार बन बैठा है।
कभी लोकतंत्र की स्थापना ,कभी विश्व शांति की रक्षा और कभी आतंकवाद के नाम से लड़ने के नाम पर अमरीका ने दुनिया के तमाम देशों में जैसी मनमानी की वह किसी से छिपी नहीं है। इसी मनमानी के चलते इराक ,लीबिया जैसे न जाने कितने देश बुरी तरह तबाह हो गए। अगर ट्रम्प ये मानते हैं कि दुनिया की समस्याओं से निपटने की जिम्मेदारी और देशों की भी है तो फिर वे औरों के फैंसलों का सम्मान करना सीखें। कुछ मामलों में तटस्थ भी रहे। कोई उनकी आलोचना भी करें तो उसे सुनने का मादा रखें। दूसरा कोई किसी मामले में पहल करे तो उसे करने दें। किसी को धमकाएं नहीं। अमरीका अगर सुधरेगा तो उसे देख कर विश्व पटल पर उभर रहे नए नए लम्बरदार को भी सद्बुद्धि आएगी और वो भी जिम्मेदार देश बनकर ऐसे कदम नहीं उठाएंगे जिससे विश्व शांति को खतरा उत्पन्न हो।
-दीपक शर्मा