विरासत के झरोखे से भर्तृहरि गुम्बद का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है! जब भी राजस्थान की धरा पर सबसे बड़े गुम्बदों की चर्चा होती है तो सबसे पहले तिजारा के भर्तृहरि गुम्बद का नाम आता है! ऐतिहासिक स्त्रोतों के अनुसार 1500 ईं.पू. के करीब अलाउद्दीन लोदी ने तिजारा कस्बे में श्री शंकरगढ आश्रम के पास इस विशाल गुम्बद का निर्माण करवाया था! तिजारा के दक्षिण में स्थित इस विशाल गुम्बद की गिनती उत्तरी भारत के बड़े गुम्बदों व राजस्थान के सबसे बड़े गुम्बद के रूप में की जाती है! यह गुम्बद स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है जो अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं! करीब 240 फीट ऊँचे इस गुम्बद में 8 बड़े स्तम्भ है, जो कि अनोखी कलात्मकता लिए हुए हैं! इतना ही नहीं, ईन ऊंचे स्तम्भों पर 16 छोटे कमरे निर्मित करवाएं गए हैं, जो कि देखने वालों को भी एकबारगी चकित करते हैं!
काफी बड़े क्षेत्रफल में फैले इस गुम्बद की ऊपरी मंजिल पर 23 घुमटियां बनीं हुईं हैं। हालांकि, देख-रेख के अभाव के कारण इनमें से कुछ घुमटियां खण्डित हो चुकी हैं। गुम्बद की ऊपरी मंजिल पर जाने के लिए सीढियाँ भी है। इसे भर्तृहरि गुम्बद भी कहा जाता है! इससे राजस्थान सहित तिजारा का सीना गर्व से फूल जाता है लेकिन आज के समय में जैसे इसकी हालत देखने को मिलती हैं तो फिर से निराशा छा जाती हैं। जैसे विरासत के भर्तृहरि गुम्बद की स्वर्णिम आभा पर बदहाली का ग्रहण लग गया हो! और निराशा छाएं भी क्यों नहीं, राजस्थान को गुम्बद के रूप में वास्तुकला का बेजोड़ नमूना उपहार स्वरूप मिला है, लेकिन प्रदेश-वासियों ने इसका सार-सम्भाल करना भी मुनासिब नहीं समझा।
इस एतिहासिक गुम्बद को पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन ले रखा है, लेकिन पर्याप्त देखरेख के अभाव में इसके चारों ओर बदहाली का आलम हैं! कुछ साल पहले जब पुरातत्व विभाग के जिम्मेदार हकीमों ने जब इसका जिम्मा उठाया तो लगा अब तो कुछ उद्धार होगा, लेकिन विभाग ने मात्र कुछ राशि खर्च कर अपने कर्तव्य की इतिश्री पूरी कर ली, इसके सौन्दर्यकरण पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया, जिससे भले ही विरासत के पन्नों पर इसका नाम भली भाँति स्वर्ण अक्षरों में दिखाई देता हो लेकिन समाज व पुरातत्व विभाग के पन्नों से इसका नाम काफी धुंधला दिखाई पड़ता हैं!
यहीं कारण है कि यहाँ समाज कंटकों ने यहां तोड़फोड़ कर रखी है तो स्थायी रूप से इस ऐतिहासिक विरासत की सुरक्षा के लिए कोई चौकीदार भी नहीं है। यहाँ गन्दगी और कचरों का आलम हैं, जो इसकी स्वर्णिम आभा पर ग्रहण की भाँति लगे हुए हैं! लोगों का यहाँ आना जाना लगा रहता है लेकिन यहाँ अधिकतर शराबियों और नसेडी कुकर्मीयों को ही देखा जाता है और उन्होंने अपना यहाँ ढेरा जमा रखा है। और साथ ही इस गुम्बद की सुन्दर पत्थरों की दीवारों पर फालतू की भद्दी अनर्गल लिखावटें करके पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त बेहाल कर रखा हैं! विभाग व प्रशासन की तरफ से यहाँ न तो कोई ठोस कदम देखने को मिलते हैं और न ही सुरक्षा की दृष्टि से इसकी सुरक्षा!!
पुरातत्व विभाग के अधीन होने के बावजूद भी गुम्बद को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए विभाग की ओर से कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गयीं! और ना ही गुम्बद की स्थिति में कोई बदलाव देखने को मिला! यदि पर्यटन विभाग गुम्बद को विकसित करता है तो क्षेत्र में पर्यटन बढेगा। पर्यटन एक ऎसा क्षेत्र है जहां पर रोजगार की भी बड़ी संख्या में संभावनाएं हैं! लेकिन इतना होने के बाद भी यहां आकर पर्यटक मायूस हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में सुविधाएं नहीं मिल पाती है! पर्यटन के मामले में तिजारा शहर का अलवर जिले के साथ ही राजस्थान में प्रमुख स्थान है, लेकिन प्रशासन ही पर्यटकों को आने से रोक रहा है!
विरासत के पन्नों से तथा भर्तृहरि के त्याग परिचय तक कुछ यूं बयां करता हैं इतिहास की कहानी –
जनश्रुतियों को मानें तो गुम्बद के निर्माण के पीछे बड़ी रोचक और दिलचस्प कहानी देखने को मिलती हैं! उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि ने निर्माण के समय त्याग का परिचय दिया! जिस समय इसका निर्माण का कार्य चल रहा था, उस दौरान उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि भी तिजारा आये हुए थे! कहाँ जाता है कि भर्तृहरि ने भी इसके निर्माण के दौरान मजदूरी की थी, लेकिन जब भी श्रमिकों को बतौर पारिश्रमिक दिया जाता था, उस समय राजा भर्तृहरि नरादर रहते थे, लेकिन अगले दिन मजदूरी पर पहुंच जाते थे! धीरे-धीरे इनके त्याग की खूब चर्चा होने लगी तो यह गुम्बद, भर्तृहरि गुम्बद के नाम से विख्यात हो गया! तथा इसे इसी भर्तृहरि गुम्बद के नाम से जाना जाने लगा और त्रिगत नगर के साथ-साथ ही पूरे राजस्थान में एक अलग पहचान मिली! लेकिन आज के दौर में इस गुम्बद के सौन्दर्यकरण तथा स्वर्णिम आभा पर ग्रहण सा लग चुका है, इस ग्रहण को हटाकर एक बार फिर प्रकाशमान करने की जरूरत है, तभी इतिहास की विरासतों को पहचान मिल पाएगी! तिजारा क्षेत्र में प्राचीन किला, पुरानी हवेलियां, एतिहासिक इमारतों के साथ ही यहाँ पर बड़ी संख्या में धार्मिक स्थल जैसे – प्राचीन श्री शंकर गढ़ आश्रम, प्राचीन दूदाधारी हनुमान मन्दिर,प्राचीन जैन मंदिर, प्राचीन श्री श्याम मन्दिर आदि भी है! जो बहुत आस्था के केंद्र माने जाते हैं! जहाँ पर आस्था के चलते साल भर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है!!
-प्रवेश गौड़ (BVC-732558)