रियासत अंसारी/बिजनौर!! महाभारत कालीन व वनों का प्रकृति का खजाना गोद में लिए गंगा किनारे बसे जिले को पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ाने के प्रयास अब तक नहीं हुए हैं। देश को भारत नाम देने वाले जिले में कोशिश और वादे तो किए गए, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया। कृष्णा सर्किट में शामिल जिले में विदुर कुटी भी अब तक पर्यटन से महरूम है। पर्यटन के रूप में विकसित होने पर जिले में रोजगार के अवसर भी बहुत बढ़ेंगे। बिजनौर जिला उत्तराखंड की सीमा से सटा है। यहां वनों के रूप में प्राकृतिक खजाने की भरमार है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बंटवारे में कार्बेट का बफर जोन अमानगढ़ बंटवारे में बिजनौर को मिला। अमानगढ़ में वे सारे वन्य प्राणी हैं जो कार्बेट में पाए जाते हैं। बाघों की यहां पर भरमार है। अमानगढ़ के अंदर डाक बंगले में दो वीआईपी सूट हैं। अमानगढ़ वन क्षेत्र को मिनी कार्बेट बनाने के प्रयास हुए। इसे कभी टाइगर जोन बनाने का कार्य शुरू हुआ तो कभी एलीफैंट जोन बनाने का। बिजनौर से प्रोजेक्ट बन कर गए लेकिन कहां गायब हो गए, इसका पता नहीं चला। इसका प्रवेश द्वार और दीवारी के लिए एक बार धन आया लेकिन अधिकारियों के रुचि न लेने के कारण वापस हो गया। तत्कालीन डीएफओ के प्रवीण राव ने प्रयास किए, पर उनका प्रयास बेकार गया। बाद के अधिकारियों ने रुचि नहीं ली। हस्तिनापुर सेंक्चुरी में बिजनौर जनपद का बड़ा भाग आता है। इस सेंक्चुरी का गठन 1986 में गठन बारहसिंगे के विकास और संरक्षण के लिए किया गया था। लखीपुर खीरी के बाद सबसे ज्यादा बारह सिंगा इसी भाग में पाया जाता है, लेकिन 36 साल बीतने के बाद भी इन पर कुछ कार्य नहीं हुआ।