रविन्द्र सेजवार/आगरा!! नाचते भालू; कलंदर समुदाय द्वारा मुगल सम्राटों का मनोरंजन करने के लिए वह 400 साल पुरानी प्रथा, जिसमे भालू के बच्चो को जंगल से निकाल कर, उनकी माँ को मार दिया जाता था। 18 दिसंबर वन विभाग के सहयोग से वाइल्डलाइफ एसओएस और उनके सहयोगि इंटरनेशनल एनिमल रेस्क्यू (आई.ए.आर), यू.के द्वारा भारत के 628 डांसिंग भालू के रेस्क्यू की दस साल की सालगिरह का प्रतीक है। इन संरक्षण प्रयासों के परिणामस्वरूप आज जंगल में स्लॉथ भालू सुरक्षित हैं, जिस वजह से यह दुनिया में सबसे बड़ी संरक्षण सफलता की कहानियों में से एक है। महज़ कुछ दिन के भालू के बच्चों को जंगल से निकाल कर, बोरियों में भर के कलंदरों को बेच दिया जाता था। लोहे की छड़ का उपयोग करके उनके दांतों को तोड़ने के बाद, लाल गर्म लोहे की नुकीली धार वाली सरिया से उनकी नाजुक थूथन में छेद कर के एक मोटी रस्सी को मांस के जलते हुए छेद से पार किया जाता था। फिर घाव को कच्चा रखा जाता था यह सुनिश्चित करने के लिए की भालू को हर पल हर वक़्त दर्द का एहसास हो। यह दर्द और डर ही था, जो भालू को कूदने के लिए मजबूर करता था। ऐसे एक जंगली भालू को नाचने वाला भालू बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था और सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उपयोग किया जाता था। समय के साथ, मुगल बादशाहों के लिए यह प्राचीन मनोरंजन एक सस्ते से सड़क के किनारे मनोरंजन का माध्यम बन कर रह गया। 1995 में, वाइल्डलाइफ एसओएस के संस्थापक – कार्तिक सत्यनारायण और गीता शेषमणि ने इस दुखदपूर्ण प्रथा से सत्य को उजागर करने के लिए दो साल के लंबे अध्ययन पर विचार किया। इस प्रकार, सबसे बड़ी संरक्षण सफलता की कहानियों में से एक शुरू हुई।वन्यजीव संरक्षण एनजीओ ने कलंदर समुदाय के कौशल प्रशिक्षण में मदद कर उनके साथ मिलकर काम किया और उन्हें जीवनयापन के लिए अन्य विकल्प उपलब्ध कराये, ताकि उन्हें भालू के शोषण पर निर्भर रहने की आवश्यकता न हो। 628 से अधिक स्लॉथ भालू को वन विभाग और वाइल्डलाइफ एसओएस द्वारा बचाया गया और बड़े जंगल रुपी फील्ड वाले भालू संरक्षण केंद्रों में उनका पुनर्वास किया गया।वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, “इस परियोजना के परिणाम काफी प्रशंसनीय थे और हम आखिरकार 400 साल से चली आ रही परंपरा को समाप्त करने में सक्षम रहे। आज, कलंदर परिवार के हज़ारों लोग जीवनयापन के लिए वन्यजीवों के शोषण पर निर्भर नहीं हैं। वाइल्डलाइफ एसओएस के लगभग 40% स्टाफ इस समुदाय से ही आते हैं।” यूके के इंटरनेशनल एनिमल रेस्क्यू के सीईओ, एलन नाइट ने कहा, “वाइल्डलाइफ एसओएस और भारत सरकार के साथ साझेदारी से यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई। हमें हमेशा से इस परियोजना का हिस्सा होने पर गर्व है और हम इन भालुओं के संरक्षण को अपना पूरा समर्थन देते रहेंगे और जंगल में उनकी आबादी की रक्षा करते रहेंगे।” वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव गीता शेषमणि ने कहा, “ठीक दस साल पहले, 18 दिसंबर 2009 को, हमने भारत के अंतिम नाचने वाले भालू ” राजू ” को बचाया था। राजू को स्वतंत्रता की तरफ अपना पहला कदम उठाते हुए देख, हमे बहुत ख़ुशी हुई कि हमने आखिरकार भारत के डांसिंग बेयर की अमानवीय प्रथा का अंत कर दिया है।” निरंतर प्रयासों के बावजूद, डांसिंग बेयर्स के अभ्यास या उनके शरीर के अंगों के लिए स्लॉथ भालू के शिकार का खतरा अभी भी जारी है। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में अभी भी डांसिंग बेयर की मौजूदगी है और इन्हें कभी-कभी सीमाओं का उपयोग कर के भारत में प्रवेश करते हुए भी पाया जाता है। हाल ही में, वाइल्डलाइफ एसओएस की एंटी-पोचिंग यूनिट, ‘फॉरेस्टवॉच’ को ख़ुफ़िया जानकारी मिली थी जिसमे वन्यजीव ट्रैफ़िकर्स के कब्जे में पाँच स्लॉथ भालू का एक समूह भारत-नेपाल बॉर्डर के पास एक फॉरेस्ट एरिया में छिपे थे।वाइल्डलाइफ एसओएस द्वारा प्रदान की गई खुफिया जानकारी के आधार पर, तस्करों को वन विभाग और पुलिस द्वारा पकड़ लिया गया और भालुओं को सुरक्षित रूप से संरक्षण केंद्र में लाया गया जहां एक नया जीवन उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।
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