अलवर शहर तो लगता है कि ठेलियों और खोखो का शहर बनता जा रहा है, जिस भी सडक़ पर निकलेंगे तो आपको सडक़ के किनारे खोखे और ठेलियां नजर आ जाएंगी। ये खोखे और ठेलियां कोई निर्धारित स्थान पर खड़ी नहीं होती हैं, जिसक जहां मर्जी होता है, वे पहले उस स्थान पर अतिक्रमण करते हैं और बाद में उस पर कुछ दिन बाद खोखे। इन खोखों के बाहर स्टूल व बैंच लगाकर अवांछित लोग बैठे हुए मिलते हैं। अलवर रेलवे जंक्शन से बाहर निकलते ही एरोड्रम वाले सडक़ मार्ग पर सामने ही कचोरी की कई ठेलियां नजर आ जाएंगी। यहां से कुछ कदम दूरी पर ही होटलों के सामने रैन बसेरे के समीप कई खोखे स्थाई लगे हुए हैं। ये खोखे वर्षों से यहां लग रहे हैं। एक तो पहले ही यहां सडक़ इतनी छोटी है, जबकि दूसरी और खोखे लगे हुए हैं। यहां रेलवे जंक्शन की ओर जाने वाला ब्रिज है। यहां से यात्री आते हैं ओर जाते हैं। यहां अलवर वाहिनी और टैम्पो व रिक्शे वाले सडक़ पर खड़े रहते हैं।
कई बार रोडवेज बस फंस जाती है और यातायात जाम हो जाता है। यहां वाहनों से सडक़ जाम दुर्घटना होना तो आम बात हो गई है। यहां से कुछ कदम दूरी पर ही एक दर्जन से अधिक खोखे और ठेलियां हैं। शाम होते ही मछली तलने की दुकानें, अंडे और मांस की ठेलियां ओर खोखे नजर आते हैं। ये वर्षों से चल रहे हैं जिनके कारण यहां रास्ता जाम तक हो जाता है। इनमें से किसी के पास मांस की दुकानें चलाने का लाइसेंस तक नहीं है। यहां से आगे निकलते ही कातला पट्टी वालो की दुकानें वर्षों से चल रही हैं। कई बार इन्हें स्थानान्तरित करने के लिए कार्य योजना बनाई गई लेकिन इसे क्रियान्वित नहीं किया जा सका।
रेलवे जंक्शन से बाहर निकलते ही दोनों सडक़ मार्गों पर खड़ी ठेलियां और खोखे अलवर की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। इससे अलवर शहर की यह तस्वीर सामने आती है जिसमें गंदगी और अतिक्रमण ही सामने आता है। अलवर शहर में अतिक्रमण कर रातों-रात ठेली व खोखे लगाने वालों ने लाखों की दुकाने लेने वालों का आर्थिक गणित खराब कर दिया है। प्रशासन अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई कुछ दिन चलाता है। तो यह हट जाते हैं ओर बाद में वही पुरानी स्थिति बन जाती है।
– प्रवेश गौर (BVC-732558)