शिक्षा किसी राष्ट्र की उन्नति का मुख्य आधार होती है लेकिन शिक्षा आज एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है। ग्रामीण क्षेत्र में यदि कोई अपने गांव में बच्चों को सस्ती और अच्छी शिक्षा मुहैय्या कराने की कोशिश करता है तो वो भी आजकल के परिवेश में कामयाब नहीं हो पाता। महानगरों से लेकर छोटे बड़े नगरों कस्बों में प्राइवेट स्कूल कुकुरमते की तरह उगे हुए हैं। इनकी पहुँच आस पास के गांव तक भी हो गयी हैं। चूँकि बच्चे को ले जाने और वापिस लाने की सुविधा देते हैं ग्रामीण लोगों को इन शहरी स्कूलों में अपने बच्चे पढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं होती। ये शहरी स्कूल काफी सुविधा संपन्न होते हैं। इनमें बड़े बड़े खेल के मैदान ,स्विमिंग पूल, कंप्यूटर शिक्षा उपलब्ध होती हैं। ये स्कूल चकाचोंध और हर सुविधा से युक्त होते हैं। शानदार बिल्डिंग होती है। शहरी हों या ग्रामीण लोग इस चकाचोंध से प्रभावित होकर अपने बच्चों का इन स्कूलों में मोटी फीस और डोनेशन देकर अपने बच्चों का एडमिशन कराते हैं। शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता करते हैं। कई कई ऐसे प्राइवेट स्कूल हैं जो बच्चों को अच्छे अच्छे नंबर देकर पास करते हैं भले ही बच्चे को बेसिक शिक्षा तक न आती हो। ये बच्चे बड़ी क्लासों तक पहुँच जाते हैं उन्हें जमा घटा के सवाल और पहाड़े तक नहीं आते । इन प्राइवेट स्कूलों को अपनी जेबें भरने से मतलब होता है।
दूसरी तरफ कुछ ऐसे महानुभाव भी होते हैं जो विद्या के प्रसार में जी जान से जुटे रहते हैं। जमीनी बेचकर या लोन लेकर अपने गांव में प्राइवेट स्कूल खोलते हैं तीन तीन मंजिला बिल्डिंग खड़ी करते हैं। प्राइवेट स्कूलों वाली शिक्षा देने की कोशिश करते हैं ताकि उनके गांव के बच्चों को सस्ते में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा सुलभ हो सके लेकिन ये स्कूल बड़े बड़े पूंजीपतियों द्वारा संचालित स्कूलों के सामने ठहर नहीं पाते और बंद होने के कागार पर पहुँच जाते हैं। स्कूल संचालक क़र्ज़ के तले दब जाता है ,बैंक का लोन नहीं उतार पाता। जो जमीन बेच कर स्कुल खड़ा करता है वो बर्बाद हो जाता है। गांव के लोग भी जिनके हित के लिए ये सब किया गया वे मुँह मोड़ लेते हैं। वे इस स्कूल में 500 रुपए फीस नहीं देंगे लेकिन शहर के स्कूल में एक हज़ार रुपए मासिक फीस और डोनेशन तक देने को तैयार हो जाते हैं। इस तरह गांव में प्राइवेट स्कूल चलाने वाले यदि चकाचोंध ,चमक धमक ,ट्रांसपोरशन जैसी व्यवस्था नहीं अपनाते और मुनाफाखोर की तरह व्यव्हार नहीं करते और सिर्फ कोरे आदर्शवाद पर चलते हैं वे पिछड़ जाते हैं। आज शिक्षा एक मिशन नहीं एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुकी है जितना जल्दी समझ लें उतना अच्छा है।
-दीपक शर्मा
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